।।जनता जनार्दन है साहब।।
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ज्ञान दे दो परवाह नहीं
जान दे दो परवाह नहीं
ईमान दे दो परवाह नहीं
कुर्बानी भी परवाह नहीं
।सब ईश्वर की संतान हैं।
अराम चाहिए काम नहीं
काम हो पर मेहनत नहीं
बेकार रहलेंखे दुख नहीं
सकारात्मकता सोचे नहीं
।।जनता जनार्दन है साहब।।
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काम न करने पर दुख
काम करने पर दुख
कुछ अच्छा तो दुख
कुछ बुरा तो दुखे दुख
।सब ईश्वर की संतान हैं।
कुछ दे दिया इसका दुख
कुछ न दिया दुखे दुख
कुछ सोच लिया दुख
न सोचा तो दुखे दुख
।।जनता जनार्दन है साहब।।
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इनकी गजब अभिलाषा
पार कोई नहीं पाता
पल में माथे पर साधे
पल में ही भूईं बैठाए
।सब ईश्वर की संतान हैं।
इनके फेरा में आओगे
पागल बन घूमराओगे
संतुष्ट नहीं कर पाओगे
सुख अपना दुख झेलेगा
।।जनता जनार्दन है साहब।।
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जैसे लोग वैसा ही प्रलाप
मानव का विशेष आधार
इनकी बातें इनका तर्क
पार करना बड़ा संकल्प
।जनता जनार्दन है साहब।
।।सब ईश्वर की संतान।।
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कविता का भाव :-
☛अपना मानव और उसका मन टिड्डा जैसा बेतरतीब उछड़ता न दिशा की सोच न दशा की सोच। उसकी सोच अजब गजब उसी सोच पर अनुसरण भी अजब गजब क्या सोचना? क्या कहना? तर्क कुतर्क, भूल गया है क्या सही है क्या है गलत?
☛सोच स्थिर नहीं तो मन भी स्थिर नहीं दिमाग भी बेतरतीब रहे। जीवन व समाज में अस्थिरता का प्रमुख कारण भी यहीं। मन में धैर्यता नहीं तो संतोष नहीं विश्वास नहीं; यदि संतोष व विश्वास नहीं तो लाख जतन कर लो फिर कुछ भी नहीं।
☛ऐसे जन को समझाना तर्क करना सिर्फ और सिर्फ अपना अहित कराना है और दुख को गले लगाना है। छोड़ दो इनको इनके हाल पर अन्त समय हल हो जाना है।
☛रावण और कंस को मारने के लिए नियंता को जन्म लेना पड़ा था। बहुत आसान नहीं इनको समझाना सब माया का बोलबाला है। जनता जनार्दन है साहब सब विधिसम्मत ईश्वर की संतान हैं।
My Heart
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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