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Monday, 8 June 2020

वाह रे जनता....

♨♨
कलयुग के हैं दिव्य दिवाकर
भारत माता की शान हैं दोनों ईश्वर के अवतारी
उनसे ही हमारा नाता है।

वाह रे जनता....
बेवकूफ रही जनता राज किए नेता!
समझ गयी जनता पहचान गई नेता।

अंधन में कनवा राजा!
जैसी रही जनता वैसे ही मिले उनको नेता!
फिर काहे कोई से वास्ता?

कौन परिवार की सोचता?
परिवार में हैं तो बस अपना सूख अपना हित
फिर काहे कोई से वास्ता?

कौन समाज की सोचता?
समाज में हैं तो सिर्फ अपना पेट अपने चट्टे बट्टे
फिर काहे कोई से वास्ता?

कौन देश की सोचता?
देश में हैं तो यहाँ भी अपना खजाना अपना वर्ग
फिर काहे कोई से वास्ता?

कौन साथ आया है?
लूटने का इरादा अकेले आया अकेले जाएगा
फिर काहे कोई से वास्ता?

मुलायम आए लालू आए
मायावती भी उछल कूद मचाईं, देखे हो न भाई
फिर काहे कोई से वास्ता?

केजरी बैठे दिल्ली में
ड्रामा खूबे रचाई ओहू अपना जमीर कटाई
फिर काहे कोई से वास्ता?

बरसाती आताताई मेंढ़क
नेता को भारत माता के सिंहासन से दूर भगाना है
फिर काहे कोई से वास्ता?

एक कहानी सब पर बनती~
अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता
फिर काहे कोई से वास्ता?

इतिहास उठाकर दखलो
जो आया लूटा भारत माता को बदनाम किया
फिर उनसे काहे वास्ता?

आजादी के बाद धरा पर
भारत माता के गौरव को मन से जिसने सोचा है
उनसे ही हमारा वास्ता।

घर छोड़ा परिवार छोड़ा
भारत माता के चरणों में जीवन को न्यौछावर किया
उनसे ही हमारा वास्ता।

कलयुग के हैं दिव्य दिवाकर
भारत माता की शान हैं दोनों ईश्वर के अवतारी
उनसे ही हमारा वास्ता।
♨♨
कविता के भाव:-
☛हमारा देश और हमारी जनता है तो प्रतिभा व वैभवशाली परन्तु ज्यादातर व्यक्ति अपने मन व अपने सोच से विवश रहता है सही गलत हित अनहित में फरक शीघ्र नहीं कर पाता है।
☛इंसान सदा ही अपने तुच्छ व संकुचित मन की ही सुनता विशालता से सदैव दूरी बनाया रहता है। ज्यादातर अपने जीवन से संबंधित ईर्द गिर्द ही घूमती है और उससे ज्यादा की सोचता ही नहीं परिणामतः घर परिवार व समाज व राष्ट्र को दूषित कर देती है।
☛इंसान अपने इसी गलत व अवसाद ग्रसित व्यवहार व आचरण से सोच इतनी निम्न कर लिया है कि उसे अच्छे बुरे व सही गलत का ज्ञान व फरक समझ में नहीं आता। वह वही करता व सूनता है जो उसकी अवसाद ग्रसित अन्तःमन कहती व सुनती है।
My Heart
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


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