मर गया जमीर....
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हर शख्स यहाँ सच्चा तो है!
तभी तो न्याय प्रणाली बनी है।
गलत कोई नहीं सब हैं सही!
चाहे तो पूछलो गलत ये कहां।
मर गया है जमीर गलत सब सही।
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कहाँ से लाते दोगले आधार!
देश का खाते चलाते हो धार।
कहां से लाते तुम बद् जमीर।
बर्दाश्त कर लेते कैसे लंठवीर।
मर गया है जमीर गलत सब सही।
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कैसे हो जाते देश के खिलाफ!
धिक्कारता नही जमीर आज
जानते हो तुम गलत हो तुम!
जुबान बोले गलत हम कहां।
मर गया है जमीर गलत सब सही।
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जुबांन मरता इंसान मरता!
मर गया जमीर कम सूना था।
इंसानियत कहीं अब रही नही!
जमीर था कौड़ियों में बेच दिया।
मर गया है जमीर गलत सब सही
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क्यों और किसलिए मार दिए
जमीर को जो मानव रीड़ था।
जुबां न सत्य न आचरण सत्य!
कर्तव्य की छोड़ो पेट है जबर।
मर गया है जमीर गलत सब सही।
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पेट नहीं मराण बना लिए हो!
एक हमारे लूट से बिगड़े है देश
यही सोच कर लूट पाट करे हो
रही सही जमीर भी निगल लिए।
मर गया है जमीर गलत सब सही।
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पापी हैं इंसान गद्दार हैं देश के!
प्रेम मानवता व समाज लूट के।
यहां गिर गये हो जमीर बेच के!
ख़ाक में मिलोगे अमीरी लेकर।
मर गया है जमीर गलत सब सही
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गंदगी है तगड़ी नहीं है ईलाज!
शरीर के साथ होगी यह खाक!
छोड़ो रहने दो इन्हें इसी हाल!
हम तो सोचे करें देश से प्यार।
मर गया है जमीर गलत सब सही।
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मर गया जमीर मर गयी आत्मा।
वंदे मातरम! भारत माता की जय।
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कविता का भाव:-
☛आज हमारे समाज में बुद्धिजीवी कहे जाने वाले तमाम शख्सियत इंसानियत व मानवता के नाम पर कलंक हैं कहने में तनिक भी संकोच का भाव मन में नहीं है। उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ अपनी आवश्यकता, सुविधा व जरूरत है जिसके लिए गलत जुबान भी होते हैं उस वक्त मर गया जमीर और मर जाती आत्मा।
☛अपनी आवश्यक आवश्यकता के लिए कुछ भी और किसी भी स्तर पर जा सकते हैं और इसके निमित्त गलत से गलत निक्रिष्ट कार्य व आचरण भी कर जाते हैं मात्र निज स्वार्थ में ये अपने जमीर को भी बेच देते हैं।
myheart1971.blogspot.com
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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