बदलता दौर
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दौर एक वो था जब
घर में एक दो कमरे हुआ करते थे!
रिश्ते कई कई दिन जीवन्त मस्त हुआ करते थे।
बड़ी बड़ी खुशियाँ
घर के आँगन में सिमटती थी!
कमरे बढ़ते गए रिश्ते संकुचित होते चले गए।
प्यार था मोहब्बत था
छोटे बड़े भाई बहन छीनाझपटी तकरार था!
साथ खाना साथ सोना पढ़ना कितना लगाव था।
देखा है उस दौर को
निगाहें चाहत उसी की रखती हैं!
जमाना बदल गया पर निगाहें यही भूल जाती है।
यही पीढ़ी का अंतर है
वो हमारा दौर था, नया तुम्हारा दौर है!
फितरत मेरी समझलो युवा हम भी नए दौर के हैं।
मस्त मिजाजी हम भी हैं
अपने ही रंग में रहना जानते हैं!
परवाह जमाने की नहीं जवां मन की करते हैं।
दौर तो वही है सदा
हमारी सोच खयालात बदल गए!
जिन्दगी वही है सांसे वहीं अमर कोई नहीं है।
जिन्दगी तो अपनी थी
अपनों का खौफ भटकने नहीं देती थी!
बदलाव यही है बेखौफ जिन्दगी लगाव नहीं है।
अब दौर ऐसी आ गई
जिन्दगी फ्लैट हो गई रिश्ते नदारद हो रहे!
अब तो खुशियां महज एक दो घंटे के रह गए।
बदला तो जरूर है
घर है परिवार है रिश्ते हैं नाते हैं सब हैं!
मगर ह्वाट्सअप, फेसबुक, इंटाग्राम पर ही करीब हैं।
कोरोना भी कुछ कम नही
झूलते लटकते रिश्तों को बल दिया है!
मगर इंसानी जज्बातों को कमजोर कर दिया है।
मूँह में मूँह डाले बात करना
हमारे दौर की बात रही व मुहावरा भी रही।
मगर इंसान डिजीटल मुहावरा इतिहास बन गयी।
हर जिन्दगी में दौर हैं तीन
पहला पिता का तो दूसरा खूद का!
तीसरा है पुत्र का गुजारना है शुभकामना सभी को।
हम तीसरे दौर में चल रहे
दौर पहला पिता का खुशियाँ रहीं!
दौर अपना जिम्मेदारियां बढ़ी तैयारी नए दौर की है।
मतलब तुलना का नहीं
समय चक्र व बदलाव ही जीवन है!
समयानुसार दौर वो भी सही दौर आज भी सही है।
हम उस जमाने के हैं
जो बीत गया नया का संकल्प ले लिया!
अपनी जिन्दगी जीएं अब नए दौर के साथ जीएंगे।
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myheart1971.blogspot.com
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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