चलो हम इंसान बन जाएं
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चलो हम इंसान बन जाएं!
मानवता गुलजार कर जाएं।
हम भगवान बनना चाहते है!
मगर इंसान बनना नहीं आता।
तारीफ सुनना रास आता है!
मगर करना रास नहीं आता।
मोहब्बत की आस है सबसे!
मगर करना रास नहीं आता।
सुकून रहे हमारे जीवन में!
मगर देना हमें नहीं आता।
चलो हम इंसान बन जाएं!
मानवता गुलजार कर जाए।
हमदर्दी की चाहत रखते है!
मगर हमदर्द बनना नहीं आता।
रिश्ते की चाहत तो सबसे है!
मगर निभाना हमें नहीं आता।
अपने जरूरत पर आएं सभी!
मगर जाना हमें नहीं आता।
उम्मीद लगाए हम रखते हैं!
मगर मदद करना नहीं आता।
चलो हम इंसान बन जाएं!
मानवता गुलजार कर जाए।
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कविता का भाव :-
☛मानव मन की उत्कंठा सागर की अथाह गहराईयों और अंबर की अनंत ऊचाईयों को भी नाप लेती है।उसकी सोच को पकड़ना आम मानव मन के बस की बात नहीं। चलो हम इंसान बन जाएं।
☛इंसान खुद को श्रेष्ठ साबित करने की चाहत में सत्कर्मों को महत्व न देकर बुरे कर्मों को महत्व देने लग जाता है।
☛हम एक इंसान हैं और इंसान का क्या औचित्य व कर्तव्य है बस उसी पर अपने ध्यान को केन्द्रित कर अपने कर्तव्य, दायित्व, व्यवहार व आचरण करना चाहिए; यह भी सही है कि जीतना कहना व्यक्ति के लिए सरल व आसान है मगर करना उतना ही मुश्किल।
☛यहाँ विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या इंसान का मन उसकी अन्तर्आत्मा को उसके सही गलत का भान नहीं कराती? क्या अच्छा है क्या बुरा है? क्या करना है क्या नहीं करना है अंतर नहीं समझाती?
☛यदि इंसान का मन और उसकी अन्तर्आत्मा उपरोक्त तथ्यों व बातों का बोध नहीं कराती तो जाहिर है इंसान जड़ता हठधर्मिता का शिकार है। ऐसा इंसान जानता तो सब कुछ है समझता भी सबकुछ है परन्तु अपनी निम्न व तुच्छ सोच व अपनी जड़ता व अकड़ता के कारण उस अन्तःमन पर भारी पड़ जाता है।
☛तत्पश्चात अपनी उसी निम्न व तुच्छ सोच के कारण अपना और अपने से जुड़े लोगों व समाज को भी दुषित करता रहता जिससे घर परिवार व समाज में अनेक प्रकार की विसंगतियां पनपने लग जाती है।
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myheart1971.blogspot.com
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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