माँ अकल्पनीय है!!
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तेरी ही रचना हूँ माते,
तुझ पे लिखूँ शब्द नहीं।
माँ जननी है जन्नत है
लक्ष्मी है सरस्वती है
शक्ति और अन्नपूर्णा है
माँ प्यार है माँ दुलार हैं
ममता की पूर्ण संसार है
माँ जीवन की पतवार है
जीवन सुख की धार है
माँ प्यार की गागर है
सिन्धू है सागर है
आँचल में स्वर्ग है
माँ गुरू है ज्ञान है
मुश्किल में ढ़ाल है
दिपक है प्रकाश है
पूजा है आराधना है
कामना है इबादत है
माँ ढ़ांढ़स है हिम्मत है
वंदनीय है पूजनीय है
अद्भूत अकल्पनीय है
ईश्वर भी नतमस्तक है
माँ जैसी है आदरणीय है
माँ कोटि कोटि प्रणाम है
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है दुर्भाग्य ऐसे पुत्र का,
माँ बेबस अगर लाचार है।
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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