चलो कुंवारे में घूम आयें.....
💝💝
वो भी अपने क्या दिन थे,
जब कुंवारे हम अपने थे।
सुखहारा आज गम का मारा,
कैसे खुश रहता बेचारा।
बैठे बैठे मन में आया,
सुखद अतीत में घूम आया।
अपने कुंवारे से मिल आया,
हर्षित मन गम दूर भगाया।
कुंवारे वाले दिन अपने,
ख्वाब में भी नजर न आते।
डका पचासा हैरान तब से,
बच्चे अपने जवान जब से।
कुंवारे में गया न कब से,
चलो कुंवारे में घूम आयें।
कहते हैं मन बूढ़ा नहीं होता,
तब मन उमंग क्यों न होता।
हम कुंवारे जवानी में झांके,
हर एक बाल काले घने थे।
योगभ्यास प्राणायाम करते,
चमके चेहरा पाॅलिश करते।
कपड़े में कीरिच रहता था,
आइने से लगाव बहुत था।
सिनेमा देख कर आता था,
हीरो बना घूमा करता था।
वो भी क्या दिन अपना था!
सच लगता सारा सपना था।
मिथुन गोविन्दा अनिल की,
स्टाईल अपनी भी होती थी।
जूही, माधुरी, और श्री देवी,
ख्वाब में अपने होती थी।
बिसर गये अपने वो दिन,
लुगाई अब प्यारी इन दिन।
अफसोस नहीं उमंग नहीं,
समय के साथ सब है सही।
डाई होता न अब पाॅलिश,
वास्तविकता बनी ख्वाहिश।
खुश रहता वो उमंग नहीं,
स्वर्ग अपनी दुनियां यही।
तन मन तब खुश हो जाये,
चलो कुंवारे में घूम आयें।
💖💖
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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