जिन्दगी लय में जियो मगर...
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जिन्दगी तुम अपनी लय में जियो
मगर किसी और की लय न बिगाड़ो।
जुड़ी हैं और भी तुमसे जिन्दगियां
कभी तो उनका मान रख लिया करो।
मुसाफिर है चंद लम्हों की जिन्दगी
झूठा ही सही मगर प्यार दिया करो।
प्रकृति ने अपना कहर बरपा दिया
इससे बड़ा कोई सबक न होगा।
नफरते सहेज कर कैसे रख लेतो हो
जतन ऐसा मोहब्बत के लिए कर लेते।
जिन्दगी तुम अपनी लय में जियो
मगर किसी और की लय न बिगाड़ो।
खुदगर्ज कैसे हो जाते हैं जमाने में
कारवां तो वही है सभी का जमाने में।
सफर भी वही है मंजिल भी वही है
जाना सभी को उसी पड़ाव से ही है।
फरक है सफर मेरा है पड़ाव समय है
हर पड़ाव सुखमय हो सोचना यही है।
न भूलो मंजिलों को सुकून चाहते हो
कर्तव्य निभालो सही काम कर चलो।
जिन्दगी तुम अपनी लय में जियो
मगर किसी और की लय न बिगाड़ो।
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कविता का भाव :-
☛अगर इंसान है तो चाहत किसे नहीं होता अपने जीवन में तमाम खुशियां बटोरने लेने कि मगर किसी की पूरी तो किसी की अधुरी ही रह जाती है सब अपनी आदतों और अपने स्वभाव से ही संभव है साहब।
☛इंसान तो सभी एक जैसे ही हैं मगर अपनी सोच अपनी चाल चलन व गतिविधियों से सबकी अलग अलग पहचान दिखती है।
☛हर इंसान की सोच व उसकी प्रवृत्ति अलग अलग होती। प्रथमतः कोई अपना जीवन अपना सुख व अपना आराम देखता है तो कोई अपने के साथ दूसरों के लिए बेचैन रहता है कोई तो ऐसे हैं जो अपने को नगण्य कर सिर्फ दूसरों को ही तरजीह देते हैं।
☛सबसे अच्छा तो यही है कि इंसान अपनी जिन्दगी तो जिए मगर सदैव कोशिश यह भी करे कि अपने खुद के चाल चलन व व्यवहार से जो तुम्हारे साथ जुड़े हैं उन पर गलत प्रभाव न पड़े उनको पीड़ा न हो और न ही उनका मन दुखे।
☛हर इंसान का जीवन चक्र एक ही है। प्रथम जनम और दूसरा मृत्यु और मृत्यु ही जीवन का अंतिम मंजिल है। जीवन और मरण के बीच तमाम पड़ाव अच्छे व बुरे दिन के रूप में जीवन में समय समय पर आते रहते हैं। उम्र के हरएक पड़ाव से हर इंसान को गुजरना ही होता है।
☛हर इंसान का यह दायित्व व कर्तव्य है कि उम्र के जिस किसी भी पड़ाव पर हैं उसमें सामंजस्य रखें उसे खुश व सुखी रखे क्योंकि वही पड़ाव कल तुम्हारा होगा। इसलिए हमें उम्र के जिस पड़ाव पर हैं उसे सुखी व खुशी बनाएं तभी तो हमारा भविष्य सुखी व सुन्दर होगा।
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✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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