पाप कर्म ही पापी का विनाशक होता।
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☛इंसान कर्मों से महान बनता है और अपने कर्मों के द्वारा ही गर्त में भी जाता है। इंसान का कर्म अच्छा है मतलब सोच अच्छी है; सोच अच्छी है तो शब्द संरचना भी अच्छी होगी; शब्द संरचना अच्छी होगी तो स्वयं के लिए और उसके अपनों व समाज के लिए गुणकारी होगी; वह अच्छा होगा उसके लोग अच्छे होंगे फलस्वरूप उसका संसार अच्छा होगा।
☛जिस दिन इंसान अपने जीवन में कोई भी गलत कार्य अपने अन्तः मन के खिलाफ जाकर करता है बस उसी समय से उसका अन्तःमन आपके दिमाग से क्लेष व द्वन्द्व करना शुरू कर देगा। इंसान का अन्तर्मन ही उस अपराधी को जब भी एकांत वाश में होगा उसके अपराध का बोध व गलती को बराबर एहसास कराता रहेगा आपका दिल दिमाग में बराबर द्वन्द्व युद्ध चलता रहेगा जो इंसान का सुकून हर लेता है।
☛जब मन की दो विपरीत अवस्थाओं से टकराव होगा तो परिणाम भी दुखद व विध्वशंक होगा जो आपके साथ साथ आपकी सोच आपके आचार विचार व व्यवहार पर सीधा प्रहार करेगी जिससे तमाम विकृति आपके अन्दर पनपना शुरू करेगी तत्पश्चात प्रतक्ष्य व अप्रतक्ष्य रूप से आप से जुड़े हुए लोगो को भी प्रभावित करेगी।
☛इंसान को जब अपने द्वारा किए गए अपराध का बोध होता तो वह हमेशा सशंकित पकड़े जाने से बचने के लिए तमाम और गलत हथकण्डे अपनाता है ऐसा व्यक्ति ऐसे समाज में जाने से बचता है जिससे उससे खतरा समझ आता है परिणाम यह होता कि उसका सभ्य समाज से दूरी बनने लगती है।
☛समाज में ज्यादातर अपराधिक प्रवत्तियों के इतिहास को देखने से यह ज्ञात हो जाएगा कि इनकी दैनिक जीवन कैसा है? संसार की तमाम बुराईयां उनमें नजर आएंगी आन्तरिक द्वन्द्व से बचने के लिए नशे का सेवन करने लग जाता है।
☛इस प्रकार ऐसे व्यक्ति अपने द्वारा किए गये अपराध पापकर्म के उपरान्त से ही अन्तः द्वन्द्व के कारण उनके विनाश की कहानी शुरू हो जाती है। समाज व कानून अपराध की संज्ञानता पर उनको सजा दे या न दे परन्तु पापी का पाप कर्म ही उसके विनाश की कहानी लिखना शुरू कर देता।
☛इंसान के पापकर्म का दण्ड स्वयं पाप कर्म में लिप्त व्यक्ति को ही नहीं मिलता बल्कि उससे जुड़े सभी को मिलता है उसका विनाश तो होता ही है परन्तु उसके आचार विचार और व्यवहार से उसका परिवार विनाश का भागी होगा ही एवं समाज पर भी बुरा असर देखने को मिलता है क्योंकि ऐसा व्यक्तित्व जहां भी होगा उस समाज को दुषित ही करेगा।
☛कहते हैं कि स्वर्ग व नर्क कहीं नहीं है सब इसी धरती पर ही है। कर्म फल सभी को इसी धरती पर ही भोग कर चले जाना है। जो जैसा करेगा वैसा ही वह पाएगा यही परम सत्य है।
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कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
जो जस करहि सो तस फल चाखा।।
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My Heart
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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