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Wednesday, 27 May 2020

इंसान की समस्या।

इंसान की समस्या

♨♨

पारखी नज़र न रही

दूरदर्शिता भी न रही

धैर्य न  विश्वास  रही

मान न  संस्कार रही

मकसद  बस ये रही

अर्जन हो जाए सही

वर्तमान स्वरूप यही

इज्जत  कर  न पाए

वाणी  मधुर  न  रखें

ज्ञान फिर कैसे  पाए

परिश्रम कर  न पाए

दिमाग चला  न पाए

कहो  समझ  न पाए

धन  फिर  कैसे पाए

बात  बिलकुल खरी

विचार करो तो सही।

♨♨

कविता का भाव:-

☆☆इंसान के जीवन की सर्वभौमिक समस्या स्वयं की सोच और उसका व्यवहार ही है हम उस पर कभी भी गौर नहीं करते और न ही कभी समझने की कोशिश ही करते हैं। समस्याएं हमारी खूद की जनित होती और हम हैं कि दोषी किसी और को ठहराते हैं।

☆☆हम कोई भी कार्य करते करते हैं कोई भी बात करते हैं उसको सही तरीके से परखने का प्रयत्न ही नहीं करते और न ही गंभीर होते हैं।

☆☆कार्य और बात की गति और उससे होने वाले प्रभाव व दूरगामी परिणाम को समझने की कोशिश ही नहीं करते बस त्वरित लाभ व फायदा के चक्कर में अपने दूरगामी सुखद परिणामों से सहज ही वंचित हो जाते हैं।

☆☆आज के दौर में इंसान अपने धैर्य और विश्वास को इतना कमजोर कर लिया है कि थोड़ी थोड़ी परेशानियों और उलझनों से अपना धैर्य व अपनों पर से विश्वास ऐसे खो देता है जैसे पुराने दुश्मन हों।

☆☆पहले की तुलना में आज हम संस्कार विहिन होते जा रहे हैं। उसे न तो अपने मान सम्मान व ईज्जत की चिन्ता है और न ही दूसरों की; परिणाम सुखद हो ऐसी कल्पना कैसे कर सकता है? सोचता भी नहीं कि हमारे इस प्रकार के व्यवहार से हमसे लोग जूड़ेंगे कैसे?

☆☆बोली भाषा में मधूरता न रख पाने के कारण दूसरों से अपने बड़ों से बिना मूल्य चुकाए मिलने वाले प्रेम, स्नेह व ज्ञान से वंचित रहा जाता।

☆☆आज ज्यादातर लोगों की अभिलाषा यही है कि श्रम न करना पड़े, दिमाग न लगाना पड़े व झूकना न पड़े और हमारा हर कार्य व हर मुराद पूरी हो जाए।

✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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