नफ़रत हटेगी तभी चैन होगी।
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नफ़रत हटेगी तभी चैन होगी!
प्यार तभी है तभी सुकून होगी।
नफ़रत के आगे बेबस हुए हो!
खुशी सामने है पर रो रहे हो।
दिलों में अपने नफ़रत जमाए!
कैसे खुशी फिर दिल में समाए।
नफ़रत अपना के दंस सहते हो!
क्यों इतनी पीड़ा तुम ले रहे हो।
नफ़रत की अग्नि में जल रहे हैं!
हासिल किए क्या ये तो बताओ।
नफ़रत हटेगी तभी चैन होगी!
प्यार है तभी तभी सुकून होगी।
करीब होना था वो दूर हो गया है!
नफ़रत की अग्नि के भेंट चढ़ा है।
कैसे बताएं तुम्हे कैसे समझाएं!
नफ़रत से कुछ भी हासिल नहीं है।
जब तुम प्रेम परस्पर अपनाते!
तभी तो सभी से तुम सुख पाते।
प्यार से जीना है नफ़रत हटाओ!
दूरी बनाओ उसे जड़ से मिटाओ।
नफ़रत हटेगी तभी चैन होगी!
प्यार तभी है तभी सुकून होगी।
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कविता का भाव:-
☆☆हमारे घर परिवार, समाज व देश में अजीबो गरीब नफरत का माहौल किसी न किसी बात को आधार बनाकर चन्द निज लाभ के निमित्त उत्पन्न किया जा रहा है। नफरत का आलम इस कदर समावेश हो गया है कि व्यक्ति व्याकूल व बेचैन रहने लगा है। जिसका दूरगामी परिणाम बहुत कष्टकारी है चाहे वह घर परिवार हो या समाज या फिर देश हो। नफरत में इंसान पूर्णतया विवेक शून्य हो जाता तो जाहिर है उसके फैसले भी अविवेकी, गलत व शून्य ही होगा।
☆☆इंसान के जीवन में सुकून, प्यार व स्नेह तभी रह सकता है जब हम विवेकशील बनें और सही व गलत पर विचार करे। नफरत ही वो कारण जिससे इंसान को कुछ भी हासिल नहीं होता बल्कि उसके स्वयं का ही नुकसान होता। उसका उसके घर परिवार में व समाज में तिरस्कार होता है। उसके अपने जो कभी साथ हुआ करते वो सब उससे दूर हो जाते बल्कि यह समझ लीजिए कि नफरत रखने वाला इंसान अपने स्वभाव के कारण खूद को ही सबसे दूर करते चला जा रहा है।
☆☆व्यक्ति विशेष का नफरत घर परिवार व समाज को पतन की ओर अग्रेषित करती है।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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