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छोटी छोटी गूढ़ बातें मन में सदा सुषुप्त ही रहती हैं!
नित चिन्तन व मनन से मन में जाग्रत हो सकती है।
किताब, सत्संग व उपदेश जीवन के सच्चे सारथी हैं!
जीवन की खुशियों के लिए हर पल साधना करनी है।
किताब, सत्संग व उपदेश हमें ज्ञान प्रशस्त कराती है!
इसकी मियाद बस उतनी है जब तक संग सारथी है।
आत्मचिन्तन वह शक्ति है जीवन पर्यन्त तक रहती है!
चिन्तन से मोह छुटा तो दुख का कारण बन सकती है।
आत्म चिन्तन जो सुन्दर है तो जग सुन्दर हो जाता है!
बातों में समरसता आती अभिमान नहीं टिक पाता है।
जीवन पर्यन्त यह ज्ञान रहें आत्म चिन्तन जरूरी है!
चिन्तन से ब्रम्हत्व मिले है! चिन्ता चिता पर ले जाए।
सरल सहज चिन्तन कर जो उपजे मन में जो विचार!
सदैव सुखमय होत है उसका घर परिवार और संसार।
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कविता का भाव :-
☆☆इंसान के अंदर ही तमाम ऐसी महत्वपूर्ण बात व तथ्य सुषुप्तावस्था में विराजमान रहती हैं परन्तु हम उतना सोचते ही नहीं और न ही कभी सोचने का दृष्टिकोण भी नहीं रखता।
☆☆इंसान के जीवन में उक्त ज्ञान को बढ़ाने के लिए उसके सुखमय जीवन के लिए तमाम ऐसे संसाधन बतौर सारथी हैं जैसे- किताब, सत्संग व उपदेश जो हमारे जीवन को सदैव ही सुख की तरफ ले जाने के लिए अग्रेषित करती है।
☆☆परन्तु हमारी चेतन मन इतना चंचल चलायमान है कि तभी तक नियंत्रित रहती जब तक सारथी इसके साथ रहता वर्ना वह पुन: उसी सुषुप्तावस्था में चला जाता है परन्तु इसके विपरीत यदि मनुष्य अपने स्वयं के बातों व तथ्यों पर चिन्तन व मनन करता है तो उसका यह ज्ञान सदैव के लिए जीवन पर्यन्त तक बना रह सकता फलस्वरूप उसका जीवन से जुड़े हर एक पहलू पर दृष्टिकोण सकारात्मक व स्वच्छ होगा। जिससे उसका परिवेश स्वच्छ व सुन्दर होगा। प्यार व मोहब्बत का सुखद संचरण जीवन भर होगा।
☆☆आत्मचिन्तन वह योग है जिससे व्यक्ति स्वयं तो मजबूत होता है साथ में उससे जुड़े लोग भी सकारात्मकता व दृढ़ता व धैर्यता से मजबूत व होते हैं। ऐसा व्यक्तित्व जीवन के अन्तिम क्षण तक संघर्ष करता है।
☆☆अगर इंसान के पास स्वयं का आत्मचिन्तन नहीं है तो व अवश्य ही विवेक शून्य प्राणी के श्रेणी में आता है और फिर अवसादग्रस्त जीवन जीता है।
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✒.........धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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