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Friday, 23 April 2021

वाह रे इंसान.....

वाह रे इंसान.....
🍁🍁 
मचा   रहे   चहूओर   हाहाकार,
फेसबुक ह्वाट्सअप चैनल मार। 
बेहिचक  संकट दिखा सुनाकर,
जो जिन्दा उन्हें बीमार बनाकर।

इनको  प्रभु  पहले  ही  उठालो,
संकट  से   अवमुक्त   करा  दो।
मौत  के   ये   सौदागर  बड़े  हैं,
लाशों   पर   रोटियाँ  सेंकते  हैं।

राह असान बनें नहीं कोई आस,
समय  से  पहले  उखड़ते सांस।
सबको  अपनी  अपनी  पड़ी है,
अमर  नहीं पर सबको जीनी है।

घर   परिवार   चाहे  हो  समाज,
फर्ज    अदायगी    करे   इंसान।
दायित्वों   को    कब   समझता,
बस   एक  दूसरे  को   कोसता।

देख  सुन   मन  व्यथित  अधीर,
लिखने के सिवा करे क्या "धीर।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

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