युवा जाए विदेश....
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गर्व माता पिता को, बेटा रहता विदेश में।
जी रहा वो जिन्दगी, अपने धुन विदेश में।
हुयी रिश्तों की उम्र, आज रूपयों से छोटी।
दिल से कौन सोचता, अपने माँ बाप की।
गर्व माता पिता का, दिल से पूछा कभी।
कितना पैसा चाहिए, क्या नहीं देश में।
टूट जाते छूट जाते, हो जाते खामोश।
बस गये अपने दूर, कोई बुला न सके।
सोचता स्नेह वश, बुलाने में खर्च है।
जोड़ लेता हिसाब, उन्हें बुलाए तो कैसे।
सोच मैं रूक गया, मन से बोल न सका।
तब गलत हो गया, उसको दर्द हो गया।
अजनबी जहान में, गुम नाम जिन्दगी।
समझना यार यही, जुड़ी और जिन्दगी।
रहना अपने देश में, क्या नहीं देश में।
रूपया पैसा समाज, सब अपने देश में।
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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