क्या हो जाता हम अगर
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क्या हो जाता हम अगर
खामोश रह जाते।
चंद लम्हो के रिश्तों में,
कभी तम नहीं आते।
क्रोध और प्यार अपने,
पहचान अगर पाते।
कम से कम जीवन में,
अपने गम नहीं आते।
क्या हो जाता हम अगर
खामोश रह जाते.....
क्या हो जाता झूठ ही,
तारीफ क ह जा ते।
तेरी मेरी जान्दगी में,
फिर गम नहीं आते।
जिन्दगी ईश्वर नवाजे,
दे सौगात खुशियों के।
तम आते न गम आते,
खिदमत जो हम करते।
क्या हो जाता हम अगर
खामोश रह जाते.....
क्या हो जाता हिस्से के
रो टी उ से दे ते।
कम से कम अपनों में,
रोज द्वंद्व नहीं होते।
क्या हो जाता हम अगर
खामोश रह जाते.....
ते रे मे रे रिश्तों में,
कभी गम नहीं आते।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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