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Monday, 5 October 2020

फितरत कंजूसी के.....


फितरत कंजूसी के.....
🍁🍁
चाह हमें सब मिल जाये है,
बिन किए के ख्वाब रखे हैं।

फितरत  तेरे  कंजूसी के हैं,
ठेस  दिलों  को पहुँचाते हैं।

दो  शब्द  लिखने  पढ़ने में,
बड़कपन  आती  आड़े  है।

तु  छोटा  है  हम तो बड़े हैं,
सोच  यहीं   फंस  जाते  है।

कर्तव्य  बड़े  नहीं  करते हैं,
उम्मीद  छोटों  से  रखते हैं।

संस्कार समझ  नहीं पाते हैं,
तभी  तो  मुँह  की  खाते हैं।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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