देश के बोझ....
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धरती माता का कर्ज है,
फर्ज माँ समझता कौन है।
गोद में ही पलते बढ़ते हैं,
ज़हमते माँ देता कौन है।
त्याग ममता की देवी है,
देवी उसे समझता कौन है।
जिन्दगी जीते अपनी हैं,
माँ तेरा सोचता कौन है।
अपने निवाले का फिक्र है,
फिक्र तेरा करता कौन है।
अपना कुछ तो कर्तव्य है,
कर्तव्य माँ निभाता कौन है।
ऐसे इंसान भी धरती पर हैं,
बताओ माँ बोझ कौन है।
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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