बुजुर्ग और बच्चा एक समान
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बुजुर्ग और बच्चा एक समान!
बुजुर्ग को बच्चा तुम भी जान।
छोड़ दे प्यारे उनको समझाना!
उनके साॅचे में खूद को ढ़ालना।
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चलो यह माना गलत है आदत!
क्या पाओगे उनको सुधार कर।
चली चला के बेला में क्या पाना!
जो लगे इतना उनको समझाना।
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बच्चों के साथ बड़े बन जाते हैं!
बुजुर्ग के साथ बच्चे बने रहते हैं।
कभी वो हमारे माता पिता होते!
हमें माता पिता के रोल में आना।
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उनसे उलझना खुशियां खोना!
मान प्रतिष्ठा कुटुम्ब का गिराना।
वही अवस्था जब खूद पे आना!
तड़प तड़प जीते जी मर जाना।
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गलती हम यहां आज कर गये!
संस्कार भविष्य को यही दे रहे।
मन से सोचो क्या होगा अपना!
उमर हांथ पांव शिथिल करेगा।
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जब अपने खूद बुजुर्ग होजाना!
आज का दिन कल रूलाएगा।
यहाँ की करनी यहीं पर भरना!
स्वर्ग नरक सब यहीं पर बनना।
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जैसी आदत जी लेने दे जीवन!
वैसे ही अब चल तु भी रमजा।
माना कि जीवन गलत जीया!
क्या याद कर उसे बदल देगा।
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मानव आचरण बनाए ही ऐसा!
ईश्वर सब कुछ सोच के रखता।
बिन महिमा पत्ता नहीं हिलता!
उसकी लेखनी इंसान कोसता।
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एक भी आंसू टपके बुजुर्ग के!
संकट घर में व्याप्त ही रहता।
बीती बात अब बिसार दे प्यारे!
मौका है शेष भविष्य संवार ले।
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कुदरत की लाठी नहीं बोलती!
दंड इंसान को कब कैसे देती।
दंड इंसान को कब कैसे देती।
शब्दों से खूद को दुखी न करना!
व्याकुल वेदना लिये लिख डाला।
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कविता का भाव :-
☛आज हमारे समाज में ज्यादातर मनःस्थिति ऐसी हो चुकी है कि जैसे वह बीमार व घुटनों के बल आ गयी हो, इंसान को इंसान के भावना व सोच विचार से कोई वास्ता व सरोकार ही नहीं हैं। आज के दौर में अपने समाज में बुजुर्गों के साथ सामंजस्य स्थापित करना इंसान के लिए बहुत ही जटिल हो गया है।
☛हमारे और हमारे बुजुर्गों के बीच जो असमानता की स्थिति पनप रही है उसके पिछे मुख्य कारण यह है कि हम उनके जीने के तरीके उनकी बोली भाषा एवं बात विचार पर अंकुश लगाना चाहते हैं तथा उनके साथ बिताए पुराने दुखद लम्हों को याद कर खुद भी दुखी होते हैं और उन्हें भी दुखी कर देते हैं।
☛जबकि वास्तविकता तो यह है कि एक समय व अन्तराल के बाद बुजुर्ग की मनःस्थिति बच्चों वाली हो जाती। मानव प्रवृत्ति है बच्चों के साथ हर संभंव सहज संबंध स्थापित कर लेता परन्तु एक बुजुर्ग के साथ नहीं कर पाता और हम उसे समझाने व सुधारने लग जाते हैं। तभी घर में तकरार बर्बादी की स्थिति बन जाती है।
☛हकीकत व वास्तविकता कलह का यह है कि बच्चों के साथ हम बड़े तो बन जाते परन्तु अपने बुजुर्गों के साथ हम खूद को बच्चे ही बनाए रखते हैं। यही सोच आज परिवारों में कलह की जननी बनी है। करना व होना यह चाहिए कि माता पिता के चली चला के बेला में हमें जगह बदलना हैं हमें उनके साथ अब माता पिता की भूमिका में अपने को लाना होगा तभी बुजुर्ग व परिवार सुखी होगा।
☛जिस इंसान का पूरा जीवन व्यतित हो चुका हो जब शेष जीवन ही रह गया हो तो ~
क्या उसकी आदतों व बात विचार व व्यवहार को सुधारा जा सकता है?
कभी विचार किया यदि सुधार भी लिए तो पाएंगे क्या?
क्या पुरानी बातों को याद कर हमारा वर्तमान या भविष्य सुधर जाएगा?
क्या बीते दुखद बातों का बार बार उलाहना से वो दिन वापस आएंगे?
क्या हमें अपने भविष्य व आने वाले बुजुर्गियत का ज्ञान नहीं?
क्या हम अपना भविष्य भी ऐसा चाहते हैं?
क्या इतने जड़ हो गए कि अपनी आदत नहीं बदल सकते?
☛वो जैसे हैं वैसे ही रहने दो उनको सुधारने व समझाने से अच्छा खूद को समझा व सुधार लो। बीते दिनों को भूलाकर अपने वर्तमान व भविष्य को सुधारने का काम करें हम बुजुर्गों के साथ इस तरह का व्यवहार कर अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हैं। हम अपने भविष्य को यही करने की शिक्षा दे रहे हैं अपितु उनको साथ लेकर करवा रहे हैं। अत्यन्त ही दुखद व विनाशी क्रियाकलाप है।
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✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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