पिता का बोध
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अनोखा नाता पिता का होता
जुझता फिर भी खुश रहता
सह जाता दुख दर्द संतान का
सुख पर आच नहीं आने देता
पिता का बोध तो जब होता
बेटा बेटे का पिता जब होता
रखता सदा महफूज सुखी
बेटे का प्यार मोह जब होता
पिता का चाहत कुछ न होता
पुत्र प्रेम वश पालन करता
बनेगा अपने बुढ़ापे का साथी
उसका सोच कभी नहीं होता
बेटा जब तक अबोध होता
पिता का कभी न बोध होता
बोध पिता का होता उसको
जब मनमानी बेटा करता
बेटे से जब मन ठेस लगता
पिता की याद उसे आता
छिपाना पड़ता दर्द अपना
मन अफसोस में दुखी रोता
बेटे का हर समय अवस्था
पिता का बोध कराएगा
पिता अगर हैं सम्मान करो
वरना बेटे से रूलाएगा।
यहाँ का किया यहीं भरेगा
स्वर्ग नरक सब यहीं सहेगा
अफसोस नहीं होगा उसको
सही करम सब यहीं करेगा
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✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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