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Wednesday, 28 October 2020

सोच मतदाता....

सोच मतदाता.....
<👀>
मतदाता  समझदार  होता।
बस फरक इतना ही होता।।
जैसा  उसका  सोच  होता।
वैसे सोच को वोट करता।।

आदत  पीढ़ियों  से उसका।
इसको कैसे बदल वो देता।।
अगर  यदि  ऐसा  न  होता।
धर्म अधर्म से युद्ध न होता।।

पूजते  हैं लोग श्री राम को।
रावण को भी मानते लोग।।
बसते सोच  में  राम रावण।
बस फरक इतना ही होता।।

सही  गलत के  तौर तरीके।
सोच  के  ही आधार  होते।।
खुशियाँ  सोच से  ही होती।
दूखी  सोच  ही कर जाती।।

अपना सोच गलत न होता।
दोष  कमी औरों का देता।।
♨♨
✒....धीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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