वकील से कवि मन....
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अचछे खासे वकील रहे
आपदा में मौका मिले
मन बदला बन गये कवि
कविता गुन गुनाने लगे
कवियों वाले भाव बन गये
बोली भाषा सब बदल गये
बदल गये रहन सहन भी
जैसे पहले वकील ही न रहे
जोड़ तोड़ से पंक्ति रचते
शब्दों में संतुलन साधते
विकट समस्या यह आयी
रचना अपने किसे सुनाते
डरता था गड़बड़ न हो
ऊँच नीच हमसे ना हो
हिम्मत अपने जुटाये हम
स्त्री को सुनाए चाहे न वो
चटक कविता पढ़ रहे थे
चेहरे का भाव देख रहे थे
देख कर लिये आकलन
चेहरे पे भाव सुन्दर रहे थे
मन प्रसन्न हो गया अच्छा
जैसे पास हों पहली कक्षा
झट बोला देखो श्रीमती
पति वकील कवि अच्छा
पत्नी तनि क्रोध में बोली
तुमने कैसी रोग मोलली
सुनते ही दुखी मन हुआ
भड़की राम नगर वाली
चुप हुआ क्या करते भी
बातों में उनकी दम थी
दिन फोकट का अपना
बाहर कोरोना खतरा थी
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✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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