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Wednesday, 22 April 2020

वैमनुष्यता का कारण।

।।वैमनुष्यता का कारण।।
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वैमनुष्यता का कारण बनता अपना ही तुच्छ व्यवहार है!
छोटी छोटी बातों को अनदेखा कर दूर हो रहा इंसान है!

ईश्वर ने मानव को दो आँख, दो कान, एक मुँह दिए!
देखें ज्यादा, सुनें ज्यादा, बोले कम यही सींख दिए।

जीने के अनेक विधाएं हैं  जो सुखी जीवन बनाते हैं!
सूझ बूझ अपनाते हैं नाप तौल कर जुब़ान चलाते है।

माँ बच्चे को दूध पिलाने से पहले ताप सहे हथेली पर!
वैसे ही सोच समझ कर बोले और बोले नाप तौल कर।

वाणी में अभिमान प्रकट हो दुख का कारण बनती है!
जो यह मधुर, सरल, सहज हो सुखकारी बन सकती है।

जो बात दुखी हमको करे जाहिर औरों को दुख देगा!
इतना महसुस करें जो कोई  मसहूर जमाने में होगा।

जुब़ान से निकले वाणी में ब्रह्मास्त्र की शक्ति होती हैं!
क्रोध व आवेश में निकले तो प्राणघातक हो सकती हैं।

जुब़ान से निकले वाणी में जीवनरक्षक गुण भी होते हैं!
मधुर प्रेम से निकले तो जीवन के लिए संजीवनी होते हैं।

हर शब्द की अपनी मर्यादा है जिसको जानना जरूरी है!
द्रोपदी के अमर्यादित शब्द ने कौरव का विनाश कराई है।

अमर्यादित अभिमानी बोल ने खण्डित राज्य करा दिया!
एक से एक वीर, महात्मा होते भी हस्तिनापुर तोड़ गया।

अमर्यादित भाषा जो बोले बुद्धिमान वह हो नहीं सकता!
बातों का उत्तर दें हम प्रश्न बढ़ाएंगे, अपनी क्षति कराएंगे।

सहज होती गैरों से क्षमा याचना बात वाद समाप्त करना!
अपनों में जिन्दगी गुजर जाती, बात धरी यहीं रह जाती।

इसे भी ध्यान धरें 👇
वाद होगा, प्रतिवाद होगा, प्रतिउत्तर आएगा ही फिर
साथ साक्ष्य तमाम होगा, बात बढ़ेगा, क्षति कराएगा ही।

कविता का भाव :-
☛हमारे समाज में आपसी मतभेद व वैमनुष्यता का मुख्य कारण हमारा निम्न व तुच्छ व्यवहार है। महत्वपूर्ण व गूढ़ बातों को हम समझने व जानने से इंकार व अनसुना कर जाते हैं।
☛आज अगर हम सुखी हैं तो अपनी अच्छी आदतों से ही हैं अगर दुखीं है तो उसके पिछे हम स्वयं ही हैं जो हमें देखना चाहिए जो सूनना चाहिए वह न सूनते व न देखते हैं जहाँ बोलना चाहिए बोल नहीं पाते जहाँ नहीं बोलना वहाँ बोल जाते हैं तात्पर्य यह है कि हम समझदारी व धैर्यता नहीं रख पाते हैं परिणाम दुखदाई होती है।
☛हम अपने जीवन में जो सबसे महत्वपूर्ण है हमारे स्वयं के बात विचार जिस पर हम उचित नियंत्रण व तालमेल व सामंजस्य नहीं बैठा पाते हैं। शब्दों व उसके प्रयोग के महत्व को समझने की कभी कोशिश नहीं करते यह मात्र स्वयं के चिन्तन से ही संभव है।
☛कब कहाँ कैसे क्या बोलना है? क्या उचित व क्या अनुचित है परख नहीं पाते जिसकी वजह से क्षण में विनाश का कारक बन जाती है इतिहास गवाह है शब्दों के हेर फेर ने महाभारत रच दिया।
✒.......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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