।।कोरोना काल में धीरता।।
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माना कि जंग अजीब आज मुश्किल घड़ी है।
समझें तो एक ओर कुँआ दूसरी ओर खाई है।
यूँ अधीर हो जाएंगे काफिर बन क्या पाएंगे।
फिर भी बच नहीं पाएंगे मारे ही तो जाएंगे।
छिड़ी जंग कोरोना से जीत तभी हम पाएंगे।
कर सम्मान योद्धाओं का मान हम बढ़ाएंगे।
धीर धरो जो उन पर, जीत तभी मिल पाएगी।
आहत करके उनको, क्या जीवन बच पाएगी।
ईश्वर बन इस धरा की, मानवता के पूजारी हैं।
मानवता का पर काटते, देखो गद्दार जमाती हैं।
इंसान बचाने ईश्वर आते, विवेकहीन जाने कैसे।
गीता कुरान पूजते हो, फिर इतना अज्ञानी कैसे।
ईश्वर को मानते हो, नियंता उसी को जानते हो।
फिर भी अविश्वास व निराशा पास में रखते हो।
सहयोग करो घर में रहो, तभी तो बचा पाओगे।
विरोध करोगे क्या पाओगे, मारे ही तो जाओगे।
याद करो उन वीर सपूतों को बनके सजग प्रहरी
सीमा पर भारत माँ की सुरक्षा में डटे रहते हैं।
यही संकल्प दोहरानी है जन जन वीर सेनानी है।
परिवार की रक्षा लिए घर में डटे रह कर बितानी है।
सामान्य वक्त में सहजता से हम जीने के आदी हैं।
नियती की मार है मुश्किल वक्त में भी दिखानी है।
व्याकुल व भयभित होकर रोजी रोटी से दूर होकर
विवशता के कारण मजदूर पलायित हो रहे आज।
जिम्मेदारी मानवता की लेते हो कसमें संविधान की!
जब आती सेवा की बारी करते गद्दारी संविधान की।
चंद मानवता के दुश्मनों ने बेबस किया मजदूरों को।
उनके धीरज बन जाते दो वख्त रोटी प्रबन्ध कराते।
बिजली पानी फिरी ही था बस निवाले चाहिए था!
मजदूर पलायन की विवशता फिर क्यों आन पड़ी।
संकट की इस बेला में किसकी समीक्षा करानी है!
सबके रचयिता राम रमईया करनी सभी बतायेंगे।
बेबस व लाचार विश्व को सहज धैर्य व खामोशी से
लड़ कर जंग जीत दिलानी है विजय पर्व मनानी है।
संस्कार सनातनी है अपना यही पहचान करानी है।
❣❣❣
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
Vry Nice
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