अटकी भंवर में गरीबों की पीड़ा!
एक ओर खाई तो दूजे है कुआं।
तुम्हारे ही सहारे प्रभू जी रहे हैं!
कृपादृष्टि सदैव सभी पर धरे है।
दुख की घड़ी में झेले जा रहे हैं!
प्रतिष्ठा के आगे बेबस खड़े हैं।
अगर मुँह खोले प्रतिष्ठा गिरी है!
प्रतिष्ठा देखे जिन्दगी न बची है।
संकट धरा पर पहले भी रहीं थी!
समय पर अपने चली भी गईं थी।
हर अंधेरे के बाद उजाले तो होंगे!
विश्वास धरेंगे संकट से पार होंगे।
जीवन कभी एक जैसा न होता।
दुख भी होता तो सुख भी होगा!
सुख में रहो धैर्यता पूर्वक जीना!
दुख में सिद्दत से लड़के है जीना!
सभी के अपने अलग हैं तरीके!
जीने के अपने अलग हैं सलीके!
एक जैसी सोच सभी में कहाँ!
कोई जोड़े है तो कोई तोड़े यहाँ।
प्रभू के सहारे जीवन की नैय्या!
तेरी कृपा से पार होगी रे भैय्या!
अभी तक तेरे ही सहारे खड़े हैं!
आगे भी पार आप ही तो करेंगे!
❣❣
कविता का भाव:-
☆ वर्तमान महामारी में आज पूरे विश्व की मानवता हैरान, परेशान, बेबस व लाचार है। सबसे ज्यादा बेबस व लाचार आज अपना गरीब समाज है जिनके लिए रोज कुआं खोदना व पानी पीने जैसी बात है; आज पूर्णतया असहाय, बेबस व लाचार है। जिन्दगी की डर से घर में बैठा है वहीं बाहर निकलने पर मौत का डर है। करे भी तो क्या एक तरफ उसके कुआं तो दूसरे तरफ मौत की गहरी खाई बनी है।
☆ जो कुछ गरिमामयी पदो पर आसीन होकर जीविका चला रहे थे उनके लिए भी विकट स्थिति आन पड़ी है। चाह कर भी अपने प्रतिष्ठा व मान सम्मान के खिलाफ जाकर किसी से अपनक वेदना ही कह पा रहा।
☆ पहले भी समस्याएं थी लेकिन किसी ने ऐसी समस्या के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था। अप्रत्याशित अकास्मिक घटना ने मानवता को हिला कर रख दिया है।
हर किसी के जीवन की यह अविष्मरणीय घटना है यह मुश्किल लड़ाई है जिसे धैर्यता के साथ दृढ़ता लड़ कर आगे के राश्ते बनाने हैं।
☆ आज ईश्वर ने हमें एक मौका दिया है कि हम आगे भी आने वाली इस तरह की चुनौतियों के लिए अपनी कमर कस लें।
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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